Creative Space : International Journal
(Bi-monthly - Peer Reviewed Journal)
Multi Lingual and Multi Disciplinary
Issn 2347-1689
Vol 01 Issue 02 (2013)
Editor Voice
Chief
Editor
Creative Space : International Journal का यह दूसरा अंक आप विचारकों के सामने रखते हुए हर्ष अनुभव
करते है| कम समय में इस अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका को अपना एक विशेष
पाठक वर्ग मिल गया है |
साथ ही
शुभचिंतक भी जुड गए है |
हमारा उत्साह बढ़ाने
के लिए सभी अभिभावक का नम्र अभिवादन,
आज हम अपनी
भाषा के बचाव में जुड़े हुए हैं |
जहाँ देखो
वहाँ पर भारतीय भाषा के नष्टप्राय होने का खतरा सब देख रहे है | भाषा का तथाकथित ढांचा बिखर रहा है, मगर यह संकेत है कि समन्वय एवं समानता का व्यवहार में जो
भाषा सरल हो वह अपनायी जायेगी|
हिंदी फिल्में
आज २०० करोड के पार चली गई है |
यह आंकड़ा भाषा
पर रहे खतरें को धता भी बता रहे है |
फिर भी खतरा
तो है, यह समय है अपनी भाषा को रोजगारलक्षी बनाना
हैं| जो भाषा रोजगार देगी वह भाषा का विकास त्वरीत रूप से होगा ; हम किसी का इंतज़ार नहीं कर सकते कि वह आयेंगे या कोई आएगा
जो भाषा को बचायेगा |
हमें अपनी
भाषा में रोजगार उपलब्ध कराना पड़ेगा ही |
हम रोजगार
देने में नाकाम रहे तो,
भाषा भी
हमें बचा नहीं सकती, यह इतिहास बन जायेगी |
मगर जो भाषा
आज भी रोजगार के लिए ज्यादा जानी जाती है,
वह आम जनता से
बहुत दूर है | आम जनता तो आज भी
अपनी मातृभाषा को ही रोजगार एवं व्यवहार
की भाषा समझ रहे हैं और उसे उपयुक्त तरीके से व्यवहार में प्रयोग कर रहे है | तो खतरा किससे है हमारी अपनी भाषा को ?
शिक्षा का दीपक सब को जगा रहा है और उससे परम्परा एवं आधुनिकता का द्वंद्व भी
सामने आया है |
मगर क्या
शिक्षा ही वह चिनगारी है,
जो समाज रूपी
दीपक जलाती है ?
भारत में
शिक्षा प्राप्त किए हुए उच्च शिक्षित लोग स्त्री-पुरुष में कितनी समानता रखते है या सामान व्यवहार करते है ? कुछ शिक्षित लोग आज भी स्त्री-पुरुष की असमानता में विश्वास रखते है | कुछ लोग स्त्री गर्भ को गर्भ में ही मार देते है | आज भी समाज में इज्जत की दुहाई पर स्त्री का ही भोग लिया
जाता है | हमारा समाज प्राचीनता के गुण गानें में तो सब से आगे है मगर, अपने समाज में फैली यह बुराई को अनदेखा कर देता है | आखिर हमारी शिक्षा हमें किस ओर ले जा रही है |
मलाल युसुफजई ने भी शिक्षा प्राप्त की और उसने अपने समाज में स्त्री शिक्षा की
हिमायत की, उसकी उम्र कितनी थी ?
जिस उम्र में
बच्चे शिक्षा के साथ साथ खेलते है उसी उम्र में उसे आतंकवादियों की गोली शिकार हुई
| लेकिन वह हारी नहीं और पूरी दुनिया के सामने शिक्षा अधिकार और हक की बात की | शिक्षा के संदर्भ में उसके विचार को पूरी दुनिया ने सराहा
और आज भी उसके लिए कार्य कर रही है | भारत के गुजरात में इसी समय के आस-पास ठान जिल्ले में समानता, न्याय की मांग करने वाले दलित युवाओं को सरेआम मार दिया गया.... उस पर पुलिस की गोली चली थी | अफ़सोस की बात है उसकी बात भारत के दिल्ली तो क्या गांधीनगर ने भी नहीं
सुनी नहीं जाती है | आज भी उस मासुमों का घाव हरा-का-हरा है |
न्याय उनसे
कोशों दूर है |
उन्होंने भी
शिक्षा प्राप्त की थी और अन्याय,
असमानता के
खिलाफ आवाज उठाई थी |
ऐसी कई
घटनाएँ आये –दिन भारत में घटित
होती है | अन्य देशों की घटना पर भारतीयों की आँखों में आंसू आ जाते
है मगर, यहाँ कोई बलि चढ जाए तब भी संवेदनशील भारतीय लोगों के पेट
का पानी तक नहीं हिलता हैं |
आप यहाँ पर प्रकाशित लेखो का अध्ययन
कर सकते हो | आपको भारत की दो धाराएँ स्पष्ट रूप से दिखाई देगी | आप इस भारत का यथार्थ रूप से अध्ययन कर सकते है | स्वस्थ वैचारिक द्वंद्व होना चाहिए किसी भी क्षेत्र में | इस क्षेत्र से नये शोध लेखक भी हमें मिल रहे है |
प्रस्तुत शोध पत्रिका का दूसरा अंक आपके सामने रखते हुए नयें लेखकों के
विचारोंतेजक लेखों को आमंत्रित करता हूँ |
लेख मात्र लेख
न होकर आपकी प्रतिभाओं को उजागर कर सके |
यही इस
पत्रिका का मूल उद्देश्य है |
प्रधान संपादक
हरेश परमार
Email : creativespaceip@gmail.com
No comments:
Post a Comment