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Thursday, February 6, 2014

Editor Voice Vol 01, Issue 02 (2013)

Creative Space : International Journal
(Bi-monthly - Peer Reviewed Journal)
Multi Lingual and Multi Disciplinary
Issn 2347-1689
Vol 01 Issue 02 (2013)

Editor Voice

Chief Editor

Creative Space : International Journal का यह दूसरा अंक आप विचारकों के सामने रखते हुए हर्ष अनुभव करते है| कम समय में इस अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका को अपना एक विशेष पाठक वर्ग मिल गया है | साथ ही शुभचिंतक भी जुड गए है | हमारा उत्साह बढ़ाने के लिए सभी अभिभावक का नम्र अभिवादन, आज हम अपनी भाषा के बचाव में जुड़े हुए हैं | जहाँ देखो वहाँ पर भारतीय भाषा के नष्टप्राय होने का खतरा सब देख रहे है | भाषा का तथाकथित ढांचा बिखर रहा है, मगर यह संकेत है कि समन्वय एवं समानता का व्यवहार में जो भाषा सरल हो वह अपनायी जायेगी| हिंदी फिल्में आज २०० करोड के पार चली गई है | यह आंकड़ा भाषा पर रहे खतरें को धता भी बता रहे है | फिर भी खतरा तो है, यह समय है अपनी भाषा को रोजगारलक्षी बनाना हैं| जो भाषा रोजगार देगी वह भाषा का विकास त्वरीत रूप से होगा ; हम किसी का इंतज़ार नहीं कर सकते कि वह आयेंगे या कोई आएगा जो भाषा को बचायेगा | हमें अपनी भाषा में रोजगार उपलब्ध कराना पड़ेगा ही | हम रोजगार देने में नाकाम रहे तो, भाषा भी हमें  बचा नहीं सकती, यह इतिहास बन जायेगी | मगर जो भाषा आज भी रोजगार के लिए ज्यादा जानी जाती है, वह आम जनता से बहुत दूर है | आम जनता  तो आज भी अपनी मातृभाषा को ही रोजगार  एवं व्यवहार की भाषा समझ रहे हैं और उसे उपयुक्त तरीके से व्यवहार में प्रयोग कर रहे है | तो खतरा किससे है हमारी अपनी भाषा को ?

शिक्षा का दीपक सब को जगा रहा है और उससे परम्परा एवं आधुनिकता का द्वंद्व भी सामने आया है | मगर क्या शिक्षा ही वह चिनगारी है, जो समाज रूपी दीपक जलाती है ? भारत में शिक्षा प्राप्त किए हुए उच्च शिक्षित लोग स्त्री-पुरुष में कितनी समानता रखते है या सामान व्यवहार करते है ? कुछ शिक्षित लोग आज भी स्त्री-पुरुष की असमानता में विश्वास रखते है | कुछ लोग स्त्री गर्भ को गर्भ में ही मार देते है | आज भी समाज में इज्जत की दुहाई पर स्त्री का ही भोग लिया जाता है | हमारा समाज प्राचीनता के गुण गानें में तो सब से आगे है मगर, अपने समाज में फैली यह बुराई को अनदेखा कर देता है | आखिर हमारी शिक्षा हमें किस ओर ले जा रही है |

मलाल युसुफजई ने भी शिक्षा प्राप्त की और उसने अपने समाज में स्त्री शिक्षा की हिमायत की, उसकी उम्र कितनी थी ? जिस उम्र में बच्चे शिक्षा के साथ साथ खेलते है उसी उम्र में उसे आतंकवादियों की गोली शिकार हुई | लेकिन वह हारी नहीं और पूरी दुनिया  के सामने शिक्षा अधिकार और हक की बात की | शिक्षा के संदर्भ में उसके विचार को पूरी दुनिया ने सराहा और  आज भी उसके लिए कार्य कर रही है | भारत के गुजरात में इसी समय के आस-पास ठान जिल्ले में समानता, न्याय की मांग करने वाले दलित युवाओं को सरेआम मार दिया गया.... उस पर पुलिस की गोली चली थी | अफ़सोस की बात है उसकी बात भारत के दिल्ली तो क्या गांधीनगर ने भी नहीं सुनी  नहीं जाती है | आज भी उस मासुमों का घाव हरा-का-हरा है | न्याय उनसे कोशों दूर है | उन्होंने भी शिक्षा प्राप्त की थी और अन्याय, असमानता के खिलाफ आवाज उठाई थी | ऐसी कई घटनाएँ  आये दिन भारत में  घटित होती है | अन्य देशों की घटना पर भारतीयों की आँखों में आंसू आ जाते है मगर, यहाँ कोई बलि चढ जाए तब भी संवेदनशील भारतीय लोगों के पेट का पानी तक नहीं हिलता  हैं |

आप यहाँ पर प्रकाशित  लेखो का अध्ययन कर सकते हो | आपको भारत की दो धाराएँ स्पष्ट रूप से दिखाई देगी | आप इस भारत का यथार्थ रूप से अध्ययन कर सकते है | स्वस्थ वैचारिक द्वंद्व होना चाहिए किसी भी क्षेत्र में | इस क्षेत्र से नये शोध लेखक भी हमें मिल रहे है |

प्रस्तुत शोध पत्रिका का दूसरा अंक आपके सामने रखते हुए नयें लेखकों के विचारोंतेजक लेखों को आमंत्रित करता हूँ | लेख मात्र लेख न होकर आपकी प्रतिभाओं को उजागर कर सके | यही इस पत्रिका का  मूल उद्देश्य है


प्रधान संपादक
हरेश परमार

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