आदरणीय/ आदरणीया
जय भीम!
दलित साहित्य आज भारतीय साहित्य की मुख्य धारा बन चुका है। अपने सरोकार, संवेदना और सपनों के दम पर। यही साहित्य की वह धारा है, जो यथास्थितिवादी साहित्य से विद्रोह करती हुई ज्वालामुखी की तरह प्रकट हुई और इसने भारतीय रचना जगत को नीम बेहोशी से झकझोरते हुए जगाया। इसने भारतीय समाज की उन बजबजाती हुई, सड़ती हुई परंपराओं, रूढ़ियों के ऊपर से उस पर्दे को नोच फेंका जिसे डालकर पारंपरिक साहित्य काल्पनिक विमर्शों का रसास्वादन कर रहा था। साहित्य की यह नयी धारा अपने साथ ऐसी सच्चाइयों और सवालों को लेकर प्रकट हुई जिसके बारे में अब तक सोचने-विचारने की जहमत किसी ने उठाई ही नहीं क्योंकि यह अत्यंत असुविधाजनक और दुस्साहसिक भी था। दलित साहित्य अपने साथ सामाजिक न्याय का मुक्ति संघर्ष लिए हुए प्रकट हुआ, इसने हाशिये पर डाल दिये गये लोगों की पीड़ा, वेदना और छटपटाहट को रेखांकित करते हुए साहित्य के पारंपरिक मानकों को चुनौती देना शुरू किया और भारतीय साहित्य के आचार्य कराह उठे। सही मायने में यह जमीन से जुड़ा साहित्य था, इसके रचनाकार समाज की तलछट से उठकर आये थे और इनके अनुभव 'महौपन्यासिक' थे। दलित साहित्य के माध्यम से जो आत्मकथाएं आयीं, उन्होंने भारतीय उपन्यासों के रंग फीके कर दिये। दलित साहित्य ने अपने शिल्प और संवेदना के स्तर पर अपने आयामों का लगातार विस्तार किया है। यह जानना दिलचस्प होगा कि नयी सदी में यह साहित्य क्या रूप ले रहा है, आगे इसकी क्या चुनौतियाँ हैं, नये रचनाकार किन सपनों के साथ आगे बढ़ रहे हैं, उनके सामने किस तरह के संघर्ष हैं क्योंकि समय के साथ समाज भी बदल रहा है। इन्हीं चिंताओं को लेकर मंतव्य पत्रिका का अगला अंक दलित साहित्य विशेषांक होगा, जिसमें हम हिंदी के अलावा दूसरी भारतीय भाषाओं के लेखकों को भी शामिल करेंगे। इस अंक के अतिथि संपादक होंगे युवा कथाकार Suraj Badtiya . उनका मोबाइल नंबर-09891438166, ईमेल- badtiya.suraj@gmail.com रचनाकार मित्र इस योजना संबंधी अपने परामर्श उन्हें सीधे दे सकते हैं। उम्मीद है, मित्रों का सहयोग हमेशा की तरह बना रहेगा। धन्यवाद।
सादर
हरे प्रकाश
मंतव्य ( जनतांत्रिक रचनाशीलता की समग्र प्रस्तुति)
हरे प्रकाश उपाध्याय
संपादक
204, सनशाइन अपार्टमेंट, बी-3, बी-4, कृष्णा नगर, लखनऊ-226012
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