Creative Space : International Journal
(Refereed & Peer-Reviewed Intrnational Journal)
Multi-Lingual and Multi-Disciplinary
ISSN 2347-1689
Impact Factor : 0.339
Vol. 04,
Issue 03, May to Jun, 2016
Editor Voice
Creative Space
का प्रस्तुत अंक में आप सभी का स्वागत है |
कुछ पल हमारे
होते है और हम उन्हें संझोके रखते है | शिक्षा हमें वह पल देती है जिसे हम
जिंदगीभर संझोके रखते है | पर जब से शिक्षा में हमें अप्राकृतिक कुछ लगता है तो वह
शिक्षा सहज नहीं होती | हमें लगने लगता है शिक्षा का भार | हम उसे जैसे ढोते है |
बरसों से हम इसे जैसे ढोते जा रहे है | न्याय की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती | वह पल
भयावह होते है जहाँ सपने हम देखने बंद कर देते है और किसी के दिखाये सपने हम देखने
लगते है | हमारी हार वही हो जाती है, जहाँ से हम दूसरें के दिखाये मार्ग पर बिना
जांच चल देते है | अँधेरे में रौशनी आपने देखि है पर अँधेरा हो जाने पर भी आप के
हाथो में किताब होना .... वह भी किसी स्कूल की चार दिवारी के बिच में .... !!!! है
ना अजीब ! हम उस और चल पड़े है जहाँ पर संवेदना मर चुकी है | समाज में हमें टिकना
है, किसी भी हाल में और हम उस टिकावट के लिए अपने सबसे करीबी को भी जोंकने से नहीं
हिचकते | ये बात भी सही है कि, आखिर वह दौड़ेगा नहीं तो हमें दौड़ना पड़ेगा, वह बैठ
जाएगा तो फिर उसका भविष्य और हमारी इज्जत मिटटी में मिल सकती है | यह भाव और खोखली
शिक्षा व्यवस्था आपके अंदर के मानव को मार देती है | उसके बाद आपका स्टेटस जिन्दा
रहता है.... |
आज कल कई
विज्ञापन हमारे सामने आते है | बेटी बचाओ, बेटी पढाओ....| पर जब हम यथार्थ को
देखते है तो पता चलता है, सरकारी अस्पताल अपना दम तौडती दिखती है और निजी
अस्पतालों को मान्यता इसी नारे लगानेवाले देते है, जहाँ सबसे ज्यादा नस्ल का
परिक्षण होता है और बेटी हुई तो वहां गिराई भी जाती है | यह करीब पुरानी कहावत
जैसा है लगता है, हाथी के दांत दिखाने के अलग, चबाने के अलग | कथनी-करनी में यह
अन्तर को हम जब तक समझ पाते हमें देश की दुहाई दी जाती है |
महंगाई और
शिक्षा में महंगाई हमें कुछ भी सोचने पर पाबंदी लगाती है | आप कुछ भी सोच सकते है
पर न्यायी व्यवस्था के लिए कुछ भी नहीं | हम सहते आ रहे है इस समय का यथार्थ | पर
इस यथार्थ से जूझने से ज्यादा हम उनके अनुकूल हो रहे है | यह गंभीर है | जहाँ पर
आवाजे दबाई जाती है देश के नाम पर | हमारे समाज में एक ऐसा तबक्का है जो लगातार
काम करता है और उन्हें मौका ही नहीं दिया जा रहा है सोचने-समझने का | उनकी
अभिव्यक्ति में बस वही सामने आता है जो उन्हें दिखाया-सुनाया जाता है | उनके बोल
अपने नहीं होते, पराये होते है और उसका अहसास भी उन्हें नहीं होता |
हम शिक्षा
पाते है, लेते है, शिखते है | पर हम शिक्षित होते हुए भी बौने है | हमारे ऊपर कुछ
नियम थोपे जाते है जिसे हम ढोते भी है | शिक्षा एक व्यवसाय है.... जिसे हम नकारते
हुए भी स्वीकारते आ रहे है | इस शिक्षा के चलते ही, हमें नकारा भी गया है, पर
शिक्षा ही वह द्वार है जहाँ से आप बेहतर बनकर बाहर निकलते है | इसलिए शिक्षा का
व्यवसायीकरण गंभीर है |
हम
प्रतिबद्धता के साथ आपके सहयोग से आगे बढ़ रहे है, हम आप सभी को धन्यवाद करते है | यह
अंक आपके सामने रखते हुए, भविष्य में आपके सहयोग की अपेक्षा के साथ....
धन्यवाद |
डॉ. हरेश परमार
Research Associate
CDLA, New Delhi
Email
: creativespaceip@gmail.com
Website : http://eklavyapublication.in
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(Refereed & Peer-Reviewed Intrnational Journal)
Multi-Lingual and Multi-Disciplinary
ISSN 2347-1689
Impact Factor : 0.339
Vol. 04,
Issue 01, Jan. to Feb., 2016
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का प्रस्तुत अंक के साथ 4 साल सफलतम पुरे कर लिए है | आप
सभी का धन्यवाद |
हमें आगे बढ़ना
है, हमें कुछ कर दिखाना है, हम में वह ज़ज्बा है हो हर इन्सान में होता है, कुछ कर
गुजरने का | हमें अपने बलबूते पर यानी आप सभी के साथ आगे बढ़ना है | हम लगातार
बेहतर करने की कोशिष कर रहे है एवं उनमें कई प्रकार की कठिनाइयाँ भी आ रही है |
हमारे मेम्बर सारे आपके बेहतर भविष्य के साथ आपका यह मंच भी बेहतर बनाने के लिए
प्रतिबद्ध है एवं मेहनत करते है | पर अभी भी हमारा संघर्ष जारी है | हम कई लेखकों
को सामाजिक प्रतिबद्धता के चलते आप के सहयोग से उन्हें सहयोग करते है | यह भावना
ही हमें बेहतर बनाने एवं बेहतर मंच प्रदान करने की प्रेरणा है |
नए लेखक हमारे
साथ जुड़े है एवं जुड़ते रहे है, कई पत्र-पत्रिकाओं के बीच हमारा काम लगातार बढ़ रहा
है | हर रोज हमें चुनौतियों का सामना करना पड़ता है | पर आपके साथ एवं सहयोग से हम
एवं आप आगे बढ़ रहे है | इन चौथे साल में प्रवेश के समय हमने दो विशेषांक निकाले है
तो साथ में हमने कई अंकों को विशेषरूप से संभाल के रख सके ऐसा रूप दिया गया है |
आप की प्रगति में ही हमारी ख़ुशी है |
फिलहाल दिल्ली
से आपके साथ बातचीत होती है, कई बार आप को नेटवर्क की वजह से परेशानी उठानी पड़ती
होगी, आपका हर काम एवं हर बात को हम गंभीर रूप से लेते है एवं हर संभव समय में उसे
पूरा करने के लिए कोशिश करते है | आपके सम्पर्क एवं बातचीत में नेटवर्क रूपी अवरोध
के कारण हम आपसे धैर्य की बिनती करते है | हो सके तो आप मेल भी करें जिससे आपको मेल
के माध्यम से सही जानकारी भी मिल जाये एवं आपके अकादेमिक अनुभव एवं भविष्य को बेहतर
बना सके |
वर्तमान परिदृश्य में जहाँ फेलोशिप बंद होती जा रही
है वही फ़ीस भी बढ़ रही है | कई संस्थान निजी रूप से संचालित हो रहे है तो कई सरकारी
संस्थान बंद करने की बात भी उठ रही है | शिक्षा संस्थाओं का निजीकरण एवं शिक्षा संस्थाओं
को बंद करना-करवाना हमें फिर से उस युग में खड़ा कर देगी, जहाँ पर असमानता पग-पग हमें
ठेंच पहुंचाती है | हमें देश को बौद्धिक रूप से सशक्त देखना है तो हमें वैज्ञानिक सोच
को अपनाना होगा जो संविधान में हम नागरिक की मूल भावना में समाहित है | वैज्ञानिक विचार
ही आपके मन एवं विचार को तथ्य को समझने एवं यथार्थ को जानने के लिये दृष्टि देता है
|
यहाँ पर कई लोग
पैसे से अमीर है, दिल से गरीब, यह वाकया किसी के साथ भी घटित हो सकता है | यही समय
है हमें हमारी पहचान को पाने कि, की हम क्यों अमीर को अमीर होते एवं गरीब की ज्यादा
गरीब होते हुए देखें | हम एक राष्ट्र की बात करते है पर समानता की जगह समरसता को रखते
है, जो सरासर भ्रामक ख़याल एवं यथार्थ से परे है | आज भी हम उन बातों में उलझे है जहाँ
पर एक ही बात कौन बोलता है उस पर निर्भर हो जाती है की वह बात गलत है या सही |
अमीर, सत्ता से लिप्त एवं सत्ता समर्थक बोल को हमेशा सही माना जाना एवं सत्ता से परे
यथार्थ बात रखना सत्ता के विरुद्ध माना जाना हमारे लोकतंत्र पर खतरा है |
अंत में हमारे
उच्च शिक्षा में असमानता के चलते जब कोई आत्महत्या होती है, तो हमें यह समझना होगा
की न्याय उनके लिए सबसे ज्यादा जरुरी है, अगर उन्हें न्याय नहीं मिलता है तो संभव है
जो लोग ऐसी विभेदकारी एवं शोषणकारी प्रवृत्ति में लिप्त है उनका हौशला बढ़ेगा एवं जो
न्याय के पक्ष में है उनका संघर्ष और संघर्षमय हो जायेगा | उच्च शिक्षा में ऐसी घटनाएँ
हमें हमारे शिक्षा तंत्र पर सवाल खड़ा करती है की आखिर हम रोजगारपरक शिक्षा दे के
उन्हें बेरोजगार बना रहे है साथ में उनके विचारों का हनन भी कर रहे है | हमारे बेहतर
भविष्य के लिए हमारा साझा प्रयास हमें बेहतर स्थिति में ला सकता है |
हम
प्रतिबद्धता के साथ आपके सहयोग से आगे बढ़ रहे है, हम आप सभी को धन्यवाद करते है | यह
अंक आपके सामने रखते हुए, भविष्य में आपके सहयोग की अपेक्षा के साथ....
धन्यवाद |
डॉ. हरेश परमार
Creative Space : International Journal
(Bi-monthly - Peer Reviewed Journal)
Multi Lingual and Multi Disciplinary
ISSN 2347-1689
Sept. to Oct., 2015
Vol 03, Issue 05
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Creative Space : International Journal
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Space
का प्रस्तुत अंक आपके सामने आपके माध्यम से कई ऊँचाईयाँ छू
रहा है | आपके प्रयासों से ही हम निच्चित समय में कार्य कर पा रहे है एवं आपके
सामने तीसरे साल के पांचवे अंक को प्रस्तुत कर रहे है | आप सभी का सहयोग के लिए धन्यवाद
ज्ञापन करते है |
विगत 10 सालों से शिक्षा से जुड़े दावे एवं प्रयोग गंभीर रूप
से राज्य एवं देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे है | यह मानते है की, जिन लोगो
को सरकारी नौकरी मिल जाती है वह बिना काम किये सिर्फ वेतन के वक्त की सक्रीय होता
है | ऐसे लोग कौन है एवं सरकार तथा लोगों ने उस पर क्या कार्यवाही की ? इस पर सब
मौन है | पर इस बात से यह नहीं माना जाता की सब कर्मचारी सिर्फ वेतन पर दीखते है |
खैर, इससे जो लोग काम करते थे एवं जो कर्मचारी नए जुड़े, उनको 5 साल की गुलामी की
जंजीरों में बाँधा गया | कहते है की आदमी के पूर्वज बन्दर है, बन्दर अपनी पूंछ का
इस्तमाल कर एक डाल से दूसरी डाल पर कूदते हुए चला जाता है | उसे भी अगर बंधक बना
दिया जाये तो वह बन्दर भी नाचने लगता है | कम वेतन और पांच साल की गुलामी के बाद
जब उसे फिर से नए सिरे से सुरक्षा में जीवन बसर करना पड़ता है तब तक वह परिवार की
जिम्मेदारियों से लड़ गया होता है | गुलामी में जो लोग असुरक्षा के माध्यम में वह
काम तो अच्छे करते दिखाई देते है पर काम के प्रति जो समर्पण है वह नहीं आ सकता |
मेरा यह मानना है, मेरे देखे हुए एवं भोगे हुए यथार्थ अनुभवों के आधार पर |
आज-कल यह बार बार सुनने में आता है की, हमें किसी बाहरवाले
को यह नहीं बताना है कि, हमारे यहाँ गरीबी, जातिवाद, भुखमरी, नक्सलवाद आदि समस्या
होने के बावजूद हमें सब अच्छा ही दिखाना है | यह आज बहुत जोरों से हो रहा है | आज
देश कई तरह से बिखरा हुआ है एवं बिखरता जा रहा है | समाज एवं देश जब बिखर रहा हो
तब बुद्धिजीवी एवं लेखकों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है | उदय प्रकाश जी ने अपना
अवार्ड लौटाकर समाज के लिए जो सन्देश दिया था वह आज पुरे देश में गूंज रहा है |
इस समय में युवा सपने खुद युवा के नहीं होते है, युवाओं को
इस तरह से तैयार किया जा रहा है कि वह वही देखे जो वह दिखाना चाहते है | युवाओं के
सपने जब युवाओं के नहीं होते है, यानी की अपने नहीं होते | यह जिन्दगी जो मिली है
वह भी बिकी हुई लगती है | युवा जो सपने अपने मानकर जी रहे है, यह भ्रम तोड़ने की
जरुरत है | क्या आपको नहीं लगता की, निजीकरण से जो युवा पीढ़ी तैयार हो रही है, वह
मुखर तो है, पर अपनी सोच से वह मुखरित नहीं हो पाते | व्यवसायलक्षी शिक्षा के साथ
स्वयं केन्द्रित शिक्षा ज्यादा घातक है |
जन्तर-मन्तर पर आयेदिन कई सत्याग्रह के पंडाल लगते रहते है
| कोई कहता है कि, हमें मजदूर गिना जा रहा है, हम मजदूर नहीं है, नाही मजबूर, हमें
मजदूरों से बेहतर वेतन मिलना चाहिए एवं सम्मान भी | मजदूरों से किया जाने वाला
व्यवहार बंद करों | निच्चित रूप से मांग सही भी हो फिर भी नजरिया गलत | मजदूर
मजदूर है तो क्या वह गुनाह है ? मजदूर सबसे ज्यादा काम करता है, कम वेतन पाता है |
यह उनकी मज़बूरी है कि, कम वेतन में उसे काम करना पड़ता है, बिना सुरक्षा के ....|
देखा जाए तो सब मजदूर ही है, बिना काम किये आप अपना गुजारा कर सकते है ? शेर जंगल
का राजा होने के बावजूद उसे शिकार के लिए निकलना ही पड़ता है |
कुछ बाते स्वच्छता अभियान कि कर ली जाए | सफाई अभियान के
अंतर्गत जितने विज्ञापन किये जा रहे है वह होने चाहिए लोगो की जागरूकता के लिए |
किन्तु इससे ठेकेदारी प्रथा बंद हुई ? जहाँ पर असुरक्षा में सफाई कर्मचारी काम कर
रहे है | यह असुरक्षा बंधुआ मजदूरी एवं कम वेतन के लिए भी है | सरकार जिस तरह से
विज्ञापन करते है पर क्या कभी आपने विज्ञापन में उपयोग होने वाले संशाधन सफाईकर्मी
के पास देखा है ? बिना सुरक्षा के गटर साफ़ करना, कूड़ा उठाना आम बात है, पर इस आम
बात में आज तक कोई सुधार नहीं आया | समाज एवं सरकार की जिम्मेदारी होती है, जो
समाज के लिए रोजाना कार्य करते है उन्हें सम्मान के साथ सुरक्षा भी मिलनी चाहिए |
उच्च शिक्षा में फ़िलहाल यह फरमान हुआ है कि, उन छात्रों को
फेलोशिप केन्द्रीय विश्य्विद्यालयों में न दी जाए जो नेट पास ना हो | जेनयू और
दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों ने इसका
विरोध किया | नौकरी के लिए नेट अनिवार्य है, किन्तु फेलोशिप के लिए नहीं | फेलोशिप
पर हर बार सवाल उठते रहते है, किन्तु यूजीसी ने हालही में यूजीसी में आने वाले
अध्यापको एवं आचार्यों आदि को विजिट के लिए मानद भत्ता बढ़ा दिया | अध्यापकीय नौकरी
दरम्यान भी यूजीसी माइनर और मेजर रिसर्च के लिए वेतन के साथ अलग से संशोधन के लिए
फेलोशिप देती है | इस बात पर किसीने ऊँगली नहीं उठाई | जिन संशोधक छात्रों को
फेलोशिप मिलती है, उनपर कई पाबंदिय लगाईं जाती है एवं उसका शोषण भी होता है |
संशोधन क्षेत्र में गुलामी आम बात हो गई है, जिससे बात उछलती नहीं एवं डिग्री
मिलने के बाद मार्गदर्शक को ज्यादातर छात्र भूल जाते है | हालाँकि वह बाहर से भूल
जाते है, अन्दर से नहीं | अन्दर कहीं न कहीं वह शोषण पेड़ बन के उग रहा होता है |
वह व्यक्ति पर निर्भर करता है | भविष्य में अगर वह अध्यापक बन जाए तब वह पेड़ फल
देता है | व्यक्ति के अनुभव एवं देखने का दृष्टिकोण से यह फल प्रेरित होता है |
ज्यादातर यह पेड़ उसी मानसिकता को आगे बढाता है, जो भुगता है | मतलब यह कि, जो उसने
भुगता है, वह अन्य को भुगतने पर मजबूर कर देता है | तो दूसरी तरफ कोई अध्यापक जो
उसने भुगता है उससे शीख लेते हुए अन्य छात्र उसका भोग न बने यह ध्यान रखते है एवं
मानवीय व्यवहार करते है | इस क्षेत्र में जो अन्याय हो रहा है एवं उस पर आप अपने
विचार रखना चाहते है तो हम आपका पूरा सहयोग देगे |
हम प्रतिबद्धता के साथ आपके सहयोग से आगे बढ़ रहे है, हम आप
सभी को धन्यवाद करते है | क्रिएटीव मेम्बर कहीं भी रहे वह अपना काम बखूबी करते
रहते है, Creative Members प्रतिबद्धता एवं कार्य से धन्यवाद | हमारें सारे लेखक
जो हम पर विशवास रखते है एवं पूरा सहयोग करते है, Creative Space
की तरफ से सभी लेखकों को धन्यवाद | अपने व्यस्त समय में डॉ. अनिल खावडु और डॉ. भरत
भेडा ने अपना योगदान दिया | महेमान संपादक के तौर पर किये कार्य के लिए धन्यवाद |
यह अंक आपके सामने रखते हुए, भविष्य में आपके सहयोग की अपेक्षा के साथ....
धन्यवाद |
डॉ. हरेश परमार
Research AssociateCDLA, New DelhiEmail : creativespaceip@gmail.comWebsite : http://eklavyapublication.inMo. 09408110030 and 09716104937
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ISSN 2347-1689
Jan. to
Feb. 2014
Vol 02,
Issue 01
Editor Voice
I
Chief
Editor
हमने प्रकृति का दोहन किया है और कर रहे है | शैक्षणिक
संस्थानों ने टेक्नोलॉजी को तो अपनाया है, फिर भी कागज का उपयोग सीमित नहीं हुआ है
| हम इस भागीदारी में कागज का उपयोग सीमित करने की दिशा में सोच सकते है एवं उसे
अमल भी कर सकते है | उच्च अभ्यास में लघुशोध निबंध, प्रबंध, प्रोजेक्ट, असाइनमेंट
आदि हम कागज के दोनों तरफ उपयोग कर के ले सकते है; सोचो अगर ऐसा होगा तो एक
पर्यावरणीय क्रांति ही आ जायेगी और हम उसके समर्थक कहलायेगें | यह एक विचार है
किन्तु विचार को ही तो अमलीजामा पहनाया जाता है !
उच्च अभ्यास में छात्रों को गुलामों की तरह पिसा जाता है और
छात्र तीन से पांच साल तक गुलामी के अंधेरों में पीसकर बाहर निकालता है | हम उनसे
क्या अपेक्षा रखेगे भला ! फिर भी गुलामी
से ही तो स्वतंत्रता की हवा को पहचाना जाता है, उसी तरह हम डॉ. लगा के घूमते रहते
है | हम जिसे देश दुनिया के विद्वानजनों में गिनते है, वह अध्यापक अपने अंडर में
कर रहे शोध अध्येता को जाति, शारीरिक, मानसिक, आर्थिक रूप से कमर तोड़ देते है |
शोध अध्येता जब मानसिक रूप से प्रताड़ित होता है और घर-परिवार की जिम्मेदारी उसमें
भी खुद की जिम्मेदारी को समझे हुए, वह तीन से पांच साल गुलाम बन के रह लेता है |
हम आप अपनी शिक्षा के मंदिर कहे जानी वाली युनिवर्सिटी में आये दिन देखते रहते है
| हालाँकि सब अध्यापक ऐसे नहीं होते है, मगर फिर भी ऐसे लोग शिक्षा क्षेत्र को
अपना अड्डा स्थापित करने की फ़िराक में हैं | वह मानसिक रूप से अपने पर हुए
अत्याचारों को दूसरों पर थोपते है, जिससे उसे मानसिक संतुष्टि मिलती है | प्रस्तुत
अंक में हमने विद्यार्थियों पर हो रहे अत्याचारों एवं भेदभावों को मद्देनजर रखते
हुए शिक्षा की गणमान्य संस्था यूजीसी, नई दिल्ली ने यह बात की गंभीरता को समझते
हुए, विधार्थिओं पर होते शोषण को रोकने के लिए कई आदेश युनिवर्सिटी, संस्थाओं एवं
कॉलेजों को दिए हैं | कई युनिवर्सिटी ने उसे लागू किया है, तो कुछ ने मात्र यह
आदेश है उसे जैसे थे रहने दिया है | विद्यार्थी संगठन हलकी राजनीति में लिप्त है |
इसलिए ऐसे आदेश आये-गए हो जाते है | फिर भी कुछ यूनिवर्सिटी को महिला संबंधित
हेल्पलाइन शुरू करना ही पड़ा | मगर यह मात्र कागजी करवाई रह गई, तो पत्तों के महल
जैसा हो जाएगा | आज की स्थिति में हमें जागृत हो के शिक्षा के इस अराजक माहोल को मिटाने की कोशिश मिल के करनी चाहिए |
जिससे जाति-लिंग, वर्ण-ज्ञाति, आर्थिक, मानसिक अत्याचार होने बंद हो जाये और हम
स्वस्थ मानसिकता के साथ समाज, राज्य, देश के बारे में सही सोच और कार्य कर सके |
हमारे सामने बेकारी और युवाधन का अनुचित उपयोग भी एक गंभीर
प्रश्न है | जिसके सामने तथाकथिक राजनीतिक एवं विद्वान मौन हो जाते है | युवा सोच
पर नाजीवादी शासन थोप देते है | युवा सोच जो बनती भी नहीं और उसे गलत रूप से
खंडनात्मकता की ओर मोड़ा जाता है | सरकारें निजी शैक्षणिक संस्थानों को प्रोस्ताहन
दे कर अपनी दूकान चला रहे है; जब चुनाव आता है तो उन्ही पैसों से वोट को ख़रीदा
जाता है | चुनाव आयोग ने भी सामान्य जन चुनाव से दूर ही रहे इसलिए चुनाव में खड़े रहने
की फ़ीस ही इतनी रक्खी है कि जन साधारण की कमर ही टूट जाए | कई मुद्दे होते है मगर
बच्चे जैसे चोकलेट के लिए लड़ाई करते है; वैसे राजनितिक लोग सत्ता के लिए लड़ते दिख
जाते है | मेरी यह भाषा असंयमित होते हुए भी वास्तविक है और मुझे लिखना पड रहा है
| क्या हम सही में सृजनात्मक या रचनात्मक है ? शायद नहीं ... | कम से कम मैं जीस
स्थिति को देख रहा हूँ| वहाँ से तो मैं यही देख रहा हूँ | यह मेरे निजी विचार भी
हो सकते है; आपके विचार भी आवकार्य है |
Creative
Space : International Journal में
लगातार काम करने और हमेशा रचनात्मक रहने पर अनिल खावडू को सहायक संपादक की जगह
संपादक बनाया गया है | वह इस जर्नल को आगे ले जाये वही शुभकामनाए | इस तरफ डॉ. भरत
भेड़ा भी अपना रचनात्मक सहयोग देते रहे है और लगातार जर्नल के बारे में अपने विचार
प्रस्तुत करते रहते है | इस बार के अंक के वह अतिथि संपादक है | इन दोनों ने मेरी
जिम्मेदारी कुछ कम की जिससे मैं अपना क्रिएटीव काम कर सका हूँ और आपके सामने यह
अंक प्रस्तुत कर पाया हूँ | और भी कई साथी है जिसने हमें यथा समय सही दिशानिर्देश
दिए; उनके भी हम आभारी है | इसके साथ ही हमने अपना ब्लॉग आरम्भ कर दिया है जहाँ से
आप कभी भी कोई भी जानकारी प्रस्तुत पत्रिका के बारे में ले सकते हो | यह ब्लॉग आप
नेट जगत में http://creativespaceip.blogspot.in यहाँ से देख सकते हो | आप ब्लॉग के माध्यम से अपनी बात भी
रख सकते हो | आप हमें पत्र या मेल के माध्यम से आपके सुझाव अवश्य भेजें |
प्रधान संपादक
हरेश परमार
Conact : 09408110030
Creative Space : International Journal
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Jan. to
Feb. 2014
Vol 02,
Issue 01
Editor Voice
II
Guest Editor :
वस्तुतः साहित्य समाज को सदैव से परिष्कृत करता आया है |
यूँ कहे तो भी गलत नहीं होगा कि उनकी धरोहर है | नये विचारों को प्रस्तुत करके
समाज के लिए नविन पथ का मार्गदर्शक बनता है | क्योंकि विश्व की बड़ी से बड़ी क्रांति
या आन्दोलन के पीछे साहित्य की अहम भूमिका रही है | उक्त विधान को ख़ारिज नहीं कर
सकते है | साहित्य ही मनुष्य को परिमार्जित करता है, जीने की राह दिखता है |
स्पष्टत: साहित्य और मानव का नाता अटूट एवं अभेद है |
आज के अति आधुनिक युग में विश्व मनुष्य की जेब भरा हुआ लगता
है | भोगवादी संस्कृति मनुष्य को स्वार्थी तथा अकेलेपन के दलदल में धकेल रही हैं |
भोगवाद में डूबा मनुष्य अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहा है | एक प्रकार से घुटन
भरी जिंदगी जीने के लिए अपने को बाध्य करता जा रहा है | एक ओर जहाँ मानव चाँद और
मंगल पर निवास करने की चाहना करता है , वहीं दूसरी ओर खुद को हीन युग में धकेल रहा
हैं | क्योंकि आज के मानव की मानसिकता रुग्ण
एवं सड़ी- गली है | इसलिए आधुनिक युग में जीवन-यापन करने के बावजूद भी
विचारों की दृष्टि से आदिकाल में जी रहे है|
भारत देश आज़ादी के स्वप्नें को कई सालों पहले साकार कर चुका
हैं | किन्तु आजादी के स्वप्नें को मर्यादित वर्ग तक सीमित कर दिया गया हैं | आज
भी नारी एवं पिछड़ें वर्गों को आये दिन शोषण की आग में धकेलने का षडयंत्र पला-फुला
हैं | मुक्ति चाहना आज भी इन शोषित वर्गों से सेकड़ों कौसों दूर है | प्रस्तुत
कहावत के अनुसार “दिल्ही दूर है” के मुताकिब नारी एवं पीड़ित वर्गों से समानता तथा
बंधुता काफी दूर है | उनको आज भी समाज के हाशिये पर रखा जाता है | यूँ तो प्रबुध्ध
समाज हितेच्छुओं के दिमागी सोच में बदलाव अवश्य आया हैं | साथ ही शोषण के आयामों
में आधुनिक रवैये को प्रवृत्त भी किया हैं | आज के संचार माध्यमों की मोजुदगी
विभिन्न क्षेत्रों के शोषितों से अवगत होते हैं | कहने को ही भारतीय अति आधुनिक
युग में जी रहे हैं, किन्तु वैचारिक सोच एवं कार्य पध्धति के आधार पर हम अपने आप
को पाषण युग में स्थापित करते हैं | आज भारत देश की अलग-अलग राज्यों में या
क्षेत्रीय भू-भागों में जीवन-यापन करने वाले लोगों के अंतर्गत पिछड़ा वर्ग तथा नारी
की स्थिति आज दयनीय और जानवरों से भी गयी गुजरी हैं | साथ ही आधुनिकता की दुहाई देने
वाले शहरी लोग भी शोषण के शुभ कार्य में पीछे नहीं हैं | शोषित वर्गों का शोषण
आंगनवाडी से लेकर विश्वविद्यालय तक होता हैं | कहीं नोकरी को लेकर तो, कहीं
व्यवसाय, तो कहीं राजनीति | नारी भी
दोहरें-तिहरें अभिशाप को झेल रही हैं | एक तो मादा और पुरुषों की अनुगामी | नारी
आज के युग में घर की दहलीज से लेकर कहीं पर सुरक्षित नहीं हैं | आये दिन बलात्कार,
घरेलू हिंसा, हत्या अमानुषिक अत्याचार, घुटन, संत्रास, अवहेलित आदि का शिकार नारी
होती रहती हैं |
प्रस्तुत अंक में
उक्त संवेदनशील विषयों पर साक्षरों की कलम से विचारों का प्रवाह चला हैं | उनके
माध्यम से अवहेलित वर्गों तथा नारियों के प्रति सहिष्णुता का पक्ष रखना सार्थक
कार्य हैं | क्योंकि ज्ञान के समन्दर को समेट लेना असम्भव-सा हैं | किन्तु नवोदित
विचारकों, साक्षर चिंतकों के अथाग प्रयास से ज्ञान के अभ्युत्थान रूपी दीपक यानी
हमारी पत्रिका को अधिक सामर्थ्यता प्रदान करता हैं | आशा रखते हैं ज्ञान के दीपक
को प्रज्वलित करते हुए कहीं पर भी गलती हुई हो तो क्षमार्थी हैं |
धन्यवाद
अतिथि संपादक
डॉ. भरत भेडा
Assistant
Prof. (Contrect),
Hindi
Department,
DKV Arts and
Science College,
Jamnagar
(Gujarat).
Email : bharatbheda11@gmail.com
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Editor Voice
भारतीय
पृष्ठभूमि में जब हम नजर डालते है तो हमें शुकून नहीं मिलता है. भारतीय मानव समाज
में कई तरह के भेद व्याप्त है. इस भेद को उजागर कौन करेगा ? भेद को उजागर करने के
बाद परिवर्तन के लिए मशाल कौन जलायेगा ? कई प्रश्न उठ सकते है. अगर हम स्वस्थ रूप
से विचारे तो इस पर भी कार्य होना चाहिए एवं परिवर्तन के लिए आगे आना चाहिए.
भारतीय समाज आज जिस अराजकता में जी रहा है तो समय की मांग है की परिवर्तन हो.
मानविकी से ले के तकनिकी तक. यह सृजनात्मक उन सभी का स्वागत करता है जो समाज से
प्रतिबद्ध हो एवं परिवर्तन की कामना रखता हो. विद्वानों को यह प्रश्न भी हो सकता
है की सुजनात्मक जगह में भी समाज ? यह तो कुच्छ अलग करे की जगह होनी चाहिए ! जब
समय सृजनात्मक होने के लिए प्रयासरत है तो मैं या आप कोई नहीं रोक सकता. समाज आज
खुद जगह बना रहा है और सृजन कर रहा है. सृजन ही तो है जो कुछ नया बन रहा है. यह
जगह तो उस सृजन की आवाज है. आप उस सृजन में अपना योगदान दे सकते हो. सभी मानव अपनी
तरफ से कुछ न कुछ सृजन करता है. हम इस पत्रिका के माध्यम से उस सृजन में हिस्सा ले
रहे है. आकिर स्रुजनात्माक जगह धरती पर ही है तो हम इतर क्यों ढूंढे ? हमारे पास
जो है उसमे ही सृजन के माध्यम से मानव समाज को बेहतर बनायें. मानव समाज स्वतंत्रता
चाहता है. उस स्वतंत्रता में सब मानव सामान हो एवं उन में बंधुभाव हो.
यही
उद्देश्य है की मानव समाज बेहतर से बेहतर बने. रचनाकार/संशोधक अपनी रचना भेजे और
सृजनात्मक लेखन के माध्यम से अपना योगदान दे.
प्रधान
संपादक
हरेश
परमार
Email
: creativespaceip@gmail.com
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