Creative Space : International Journal
(Bi-monthly
- Peer Reviewed Journal)
Multi
Lingual and Multi Disciplinary
ISSN
2347-1689
Jan. to Feb. 2014
Vol 02, Issue 01
Editor Voice
II
Guest Editor :
वस्तुतः साहित्य समाज को सदैव से परिष्कृत करता आया है |
यूँ कहे तो भी गलत नहीं होगा कि उनकी धरोहर है | नये विचारों को प्रस्तुत करके
समाज के लिए नविन पथ का मार्गदर्शक बनता है | क्योंकि विश्व की बड़ी से बड़ी क्रांति
या आन्दोलन के पीछे साहित्य की अहम भूमिका रही है | उक्त विधान को ख़ारिज नहीं कर
सकते है | साहित्य ही मनुष्य को परिमार्जित करता है, जीने की राह दिखता है |
स्पष्टत: साहित्य और मानव का नाता अटूट एवं अभेद है |
आज के अति आधुनिक युग में विश्व मनुष्य की जेब भरा हुआ लगता
है | भोगवादी संस्कृति मनुष्य को स्वार्थी तथा अकेलेपन के दलदल में धकेल रही हैं |
भोगवाद में डूबा मनुष्य अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहा है | एक प्रकार से घुटन
भरी जिंदगी जीने के लिए अपने को बाध्य करता जा रहा है | एक ओर जहाँ मानव चाँद और
मंगल पर निवास करने की चाहना करता है , वहीं दूसरी ओर खुद को हीन युग में धकेल रहा
हैं | क्योंकि आज के मानव की मानसिकता रुग्ण
एवं सड़ी- गली है | इसलिए आधुनिक युग में जीवन-यापन करने के बावजूद भी
विचारों की दृष्टि से आदिकाल में जी रहे है|
भारत देश आज़ादी के स्वप्नें को कई सालों पहले साकार कर चुका
हैं | किन्तु आजादी के स्वप्नें को मर्यादित वर्ग तक सीमित कर दिया गया हैं | आज
भी नारी एवं पिछड़ें वर्गों को आये दिन शोषण की आग में धकेलने का षडयंत्र पला-फुला
हैं | मुक्ति चाहना आज भी इन शोषित वर्गों से सेकड़ों कौसों दूर है | प्रस्तुत
कहावत के अनुसार “दिल्ही दूर है” के मुताकिब नारी एवं पीड़ित वर्गों से समानता तथा
बंधुता काफी दूर है | उनको आज भी समाज के हाशिये पर रखा जाता है | यूँ तो प्रबुध्ध
समाज हितेच्छुओं के दिमागी सोच में बदलाव अवश्य आया हैं | साथ ही शोषण के आयामों
में आधुनिक रवैये को प्रवृत्त भी किया हैं | आज के संचार माध्यमों की मोजुदगी
विभिन्न क्षेत्रों के शोषितों से अवगत होते हैं | कहने को ही भारतीय अति आधुनिक
युग में जी रहे हैं, किन्तु वैचारिक सोच एवं कार्य पध्धति के आधार पर हम अपने आप
को पाषण युग में स्थापित करते हैं | आज भारत देश की अलग-अलग राज्यों में या
क्षेत्रीय भू-भागों में जीवन-यापन करने वाले लोगों के अंतर्गत पिछड़ा वर्ग तथा नारी
की स्थिति आज दयनीय और जानवरों से भी गयी गुजरी हैं | साथ ही आधुनिकता की दुहाई देने
वाले शहरी लोग भी शोषण के शुभ कार्य में पीछे नहीं हैं | शोषित वर्गों का शोषण
आंगनवाडी से लेकर विश्वविद्यालय तक होता हैं | कहीं नोकरी को लेकर तो, कहीं
व्यवसाय, तो कहीं राजनीति | नारी भी
दोहरें-तिहरें अभिशाप को झेल रही हैं | एक तो मादा और पुरुषों की अनुगामी | नारी
आज के युग में घर की दहलीज से लेकर कहीं पर सुरक्षित नहीं हैं | आये दिन बलात्कार,
घरेलू हिंसा, हत्या अमानुषिक अत्याचार, घुटन, संत्रास, अवहेलित आदि का शिकार नारी
होती रहती हैं |
प्रस्तुत अंक में
उक्त संवेदनशील विषयों पर साक्षरों की कलम से विचारों का प्रवाह चला हैं | उनके
माध्यम से अवहेलित वर्गों तथा नारियों के प्रति सहिष्णुता का पक्ष रखना सार्थक
कार्य हैं | क्योंकि ज्ञान के समन्दर को समेट लेना असम्भव-सा हैं | किन्तु नवोदित
विचारकों, साक्षर चिंतकों के अथाग प्रयास से ज्ञान के अभ्युत्थान रूपी दीपक यानी
हमारी पत्रिका को अधिक सामर्थ्यता प्रदान करता हैं | आशा रखते हैं ज्ञान के दीपक
को प्रज्वलित करते हुए कहीं पर भी गलती हुई हो तो क्षमार्थी हैं |
धन्यवाद
अतिथि संपादक
डॉ. भरत भेडा
Assistant
Prof. (Contrect),
Hindi
Department,
DKV Arts and
Science College,
Jamnagar
(Gujarat).
Email : bharatbheda11@gmail.com
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