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Friday, April 25, 2014

Editor Voice : Guest Editor

Creative Space : International Journal
(Bi-monthly - Peer Reviewed Journal)
Multi Lingual and Multi Disciplinary
ISSN 2347-1689
Jan. to Feb. 2014
Vol 02, Issue 01

Editor Voice
II
Guest Editor :

वस्तुतः साहित्य समाज को सदैव से परिष्कृत करता आया है | यूँ कहे तो भी गलत नहीं होगा कि उनकी धरोहर है | नये विचारों को प्रस्तुत करके समाज के लिए नविन पथ का मार्गदर्शक बनता है | क्योंकि विश्व की बड़ी से बड़ी क्रांति या आन्दोलन के पीछे साहित्य की अहम भूमिका रही है | उक्त विधान को ख़ारिज नहीं कर सकते है | साहित्य ही मनुष्य को परिमार्जित करता है, जीने की राह दिखता है | स्पष्टत: साहित्य और मानव का नाता अटूट एवं अभेद है |

आज के अति आधुनिक युग में विश्व मनुष्य की जेब भरा हुआ लगता है | भोगवादी संस्कृति मनुष्य को स्वार्थी तथा अकेलेपन के दलदल में धकेल रही हैं | भोगवाद में डूबा मनुष्य अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहा है | एक प्रकार से घुटन भरी जिंदगी जीने के लिए अपने को बाध्य करता जा रहा है | एक ओर जहाँ मानव चाँद और मंगल पर निवास करने की चाहना करता है , वहीं दूसरी ओर खुद को हीन युग में धकेल रहा हैं | क्योंकि आज के मानव की मानसिकता रुग्ण  एवं सड़ी- गली है | इसलिए आधुनिक युग में जीवन-यापन करने के बावजूद भी विचारों की दृष्टि से आदिकाल में जी रहे है|

भारत देश आज़ादी के स्वप्नें को कई सालों पहले साकार कर चुका हैं | किन्तु आजादी के स्वप्नें को मर्यादित वर्ग तक सीमित कर दिया गया हैं | आज भी नारी एवं पिछड़ें वर्गों को आये दिन शोषण की आग में धकेलने का षडयंत्र पला-फुला हैं | मुक्ति चाहना आज भी इन शोषित वर्गों से सेकड़ों कौसों दूर है | प्रस्तुत कहावत के अनुसार “दिल्ही दूर है” के मुताकिब नारी एवं पीड़ित वर्गों से समानता तथा बंधुता काफी दूर है | उनको आज भी समाज के हाशिये पर रखा जाता है | यूँ तो प्रबुध्ध समाज हितेच्छुओं के दिमागी सोच में बदलाव अवश्य आया हैं | साथ ही शोषण के आयामों में आधुनिक रवैये को प्रवृत्त भी किया हैं | आज के संचार माध्यमों की मोजुदगी विभिन्न क्षेत्रों के शोषितों से अवगत होते हैं | कहने को ही भारतीय अति आधुनिक युग में जी रहे हैं, किन्तु वैचारिक सोच एवं कार्य पध्धति के आधार पर हम अपने आप को पाषण युग में स्थापित करते हैं | आज भारत देश की अलग-अलग राज्यों में या क्षेत्रीय भू-भागों में जीवन-यापन करने वाले लोगों के अंतर्गत पिछड़ा वर्ग तथा नारी की स्थिति आज दयनीय और जानवरों से भी गयी गुजरी हैं | साथ ही आधुनिकता की दुहाई देने वाले शहरी लोग भी शोषण के शुभ कार्य में पीछे नहीं हैं | शोषित वर्गों का शोषण आंगनवाडी से लेकर विश्वविद्यालय तक होता हैं | कहीं नोकरी को लेकर तो, कहीं व्यवसाय, तो कहीं राजनीति |  नारी भी दोहरें-तिहरें अभिशाप को झेल रही हैं | एक तो मादा और पुरुषों की अनुगामी | नारी आज के युग में घर की दहलीज से लेकर कहीं पर सुरक्षित नहीं हैं | आये दिन बलात्कार, घरेलू हिंसा, हत्या अमानुषिक अत्याचार, घुटन, संत्रास, अवहेलित आदि का शिकार नारी होती रहती हैं |

 प्रस्तुत अंक में उक्त संवेदनशील विषयों पर साक्षरों की कलम से विचारों का प्रवाह चला हैं | उनके माध्यम से अवहेलित वर्गों तथा नारियों के प्रति सहिष्णुता का पक्ष रखना सार्थक कार्य हैं | क्योंकि ज्ञान के समन्दर को समेट लेना असम्भव-सा हैं | किन्तु नवोदित विचारकों, साक्षर चिंतकों के अथाग प्रयास से ज्ञान के अभ्युत्थान रूपी दीपक यानी हमारी पत्रिका को अधिक सामर्थ्यता प्रदान करता हैं | आशा रखते हैं ज्ञान के दीपक को प्रज्वलित करते हुए कहीं पर भी गलती हुई हो तो क्षमार्थी हैं |

धन्यवाद

अतिथि संपादक

डॉ. भरत भेडा
Assistant Prof. (Contrect),
Hindi Department,
DKV Arts and Science College,
Jamnagar (Gujarat).
Email : bharatbheda11@gmail.com

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