Creative Space : International Journal
(Bi-monthly
- Peer Reviewed Journal)
Multi
Lingual and Multi Disciplinary
ISSN
2347-1689
Jan. to Feb. 2014
Vol 02, Issue 01
Editor Voice
I
Chief
Editor
हमने प्रकृति का दोहन किया है और कर रहे है | शैक्षणिक
संस्थानों ने टेक्नोलॉजी को तो अपनाया है, फिर भी कागज का उपयोग सीमित नहीं हुआ है
| हम इस भागीदारी में कागज का उपयोग सीमित करने की दिशा में सोच सकते है एवं उसे
अमल भी कर सकते है | उच्च अभ्यास में लघुशोध निबंध, प्रबंध, प्रोजेक्ट, असाइनमेंट
आदि हम कागज के दोनों तरफ उपयोग कर के ले सकते है; सोचो अगर ऐसा होगा तो एक
पर्यावरणीय क्रांति ही आ जायेगी और हम उसके समर्थक कहलायेगें | यह एक विचार है
किन्तु विचार को ही तो अमलीजामा पहनाया जाता है !
उच्च अभ्यास में छात्रों को गुलामों की तरह पिसा जाता है और
छात्र तीन से पांच साल तक गुलामी के अंधेरों में पीसकर बाहर निकालता है | हम उनसे
क्या अपेक्षा रखेगे भला ! फिर भी गुलामी
से ही तो स्वतंत्रता की हवा को पहचाना जाता है, उसी तरह हम डॉ. लगा के घूमते रहते
है | हम जिसे देश दुनिया के विद्वानजनों में गिनते है, वह अध्यापक अपने अंडर में
कर रहे शोध अध्येता को जाति, शारीरिक, मानसिक, आर्थिक रूप से कमर तोड़ देते है |
शोध अध्येता जब मानसिक रूप से प्रताड़ित होता है और घर-परिवार की जिम्मेदारी उसमें
भी खुद की जिम्मेदारी को समझे हुए, वह तीन से पांच साल गुलाम बन के रह लेता है |
हम आप अपनी शिक्षा के मंदिर कहे जानी वाली युनिवर्सिटी में आये दिन देखते रहते है
| हालाँकि सब अध्यापक ऐसे नहीं होते है, मगर फिर भी ऐसे लोग शिक्षा क्षेत्र को
अपना अड्डा स्थापित करने की फ़िराक में हैं | वह मानसिक रूप से अपने पर हुए
अत्याचारों को दूसरों पर थोपते है, जिससे उसे मानसिक संतुष्टि मिलती है | प्रस्तुत
अंक में हमने विद्यार्थियों पर हो रहे अत्याचारों एवं भेदभावों को मद्देनजर रखते
हुए शिक्षा की गणमान्य संस्था यूजीसी, नई दिल्ली ने यह बात की गंभीरता को समझते
हुए, विधार्थिओं पर होते शोषण को रोकने के लिए कई आदेश युनिवर्सिटी, संस्थाओं एवं
कॉलेजों को दिए हैं | कई युनिवर्सिटी ने उसे लागू किया है, तो कुछ ने मात्र यह
आदेश है उसे जैसे थे रहने दिया है | विद्यार्थी संगठन हलकी राजनीति में लिप्त है |
इसलिए ऐसे आदेश आये-गए हो जाते है | फिर भी कुछ यूनिवर्सिटी को महिला संबंधित
हेल्पलाइन शुरू करना ही पड़ा | मगर यह मात्र कागजी करवाई रह गई, तो पत्तों के महल
जैसा हो जाएगा | आज की स्थिति में हमें जागृत हो के शिक्षा के इस अराजक माहोल को मिटाने की कोशिश मिल के करनी चाहिए |
जिससे जाति-लिंग, वर्ण-ज्ञाति, आर्थिक, मानसिक अत्याचार होने बंद हो जाये और हम
स्वस्थ मानसिकता के साथ समाज, राज्य, देश के बारे में सही सोच और कार्य कर सके |
हमारे सामने बेकारी और युवाधन का अनुचित उपयोग भी एक गंभीर
प्रश्न है | जिसके सामने तथाकथिक राजनीतिक एवं विद्वान मौन हो जाते है | युवा सोच
पर नाजीवादी शासन थोप देते है | युवा सोच जो बनती भी नहीं और उसे गलत रूप से
खंडनात्मकता की ओर मोड़ा जाता है | सरकारें निजी शैक्षणिक संस्थानों को प्रोस्ताहन
दे कर अपनी दूकान चला रहे है; जब चुनाव आता है तो उन्ही पैसों से वोट को ख़रीदा
जाता है | चुनाव आयोग ने भी सामान्य जन चुनाव से दूर ही रहे इसलिए चुनाव में खड़े रहने
की फ़ीस ही इतनी रक्खी है कि जन साधारण की कमर ही टूट जाए | कई मुद्दे होते है मगर
बच्चे जैसे चोकलेट के लिए लड़ाई करते है; वैसे राजनितिक लोग सत्ता के लिए लड़ते दिख
जाते है | मेरी यह भाषा असंयमित होते हुए भी वास्तविक है और मुझे लिखना पड रहा है
| क्या हम सही में सृजनात्मक या रचनात्मक है ? शायद नहीं ... | कम से कम मैं जीस
स्थिति को देख रहा हूँ| वहाँ से तो मैं यही देख रहा हूँ | यह मेरे निजी विचार भी
हो सकते है; आपके विचार भी आवकार्य है |
Creative
Space : International Journal में
लगातार काम करने और हमेशा रचनात्मक रहने पर अनिल खावडू को सहायक संपादक की जगह
संपादक बनाया गया है | वह इस जर्नल को आगे ले जाये वही शुभकामनाए | इस तरफ डॉ. भरत
भेड़ा भी अपना रचनात्मक सहयोग देते रहे है और लगातार जर्नल के बारे में अपने विचार
प्रस्तुत करते रहते है | इस बार के अंक के वह अतिथि संपादक है | इन दोनों ने मेरी
जिम्मेदारी कुछ कम की जिससे मैं अपना क्रिएटीव काम कर सका हूँ और आपके सामने यह
अंक प्रस्तुत कर पाया हूँ | और भी कई साथी है जिसने हमें यथा समय सही दिशानिर्देश
दिए; उनके भी हम आभारी है | इसके साथ ही हमने अपना ब्लॉग आरम्भ कर दिया है जहाँ से
आप कभी भी कोई भी जानकारी प्रस्तुत पत्रिका के बारे में ले सकते हो | यह ब्लॉग आप
नेट जगत में http://creativespaceip.blogspot.in यहाँ से देख सकते हो | आप ब्लॉग के माध्यम से अपनी बात भी
रख सकते हो | आप हमें पत्र या मेल के माध्यम से आपके सुझाव अवश्य भेजें |
प्रधान संपादक
हरेश परमार
Conact : 09408110030
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