Creative Space : International Journal
(Refereed & Peer-Reviewed Intrnational Journal)
Multi-Lingual and Multi-Disciplinary
ISSN 2347-1689
Impact Factor : 0.339
Sept. to Oct.,
2015
Editor Voice
Creative
Space
का प्रस्तुत अंक आपके सामने आपके माध्यम से कई ऊँचाईयाँ छू
रहा है | आपके प्रयासों से ही हम निच्चित समय में कार्य कर पा रहे है एवं आपके
सामने तीसरे साल के पांचवे अंक को प्रस्तुत कर रहे है | आप सभी का सहयोग के लिए धन्यवाद
ज्ञापन करते है |
विगत 10 सालों से शिक्षा से जुड़े दावे एवं प्रयोग गंभीर रूप
से राज्य एवं देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे है | यह मानते है की, जिन लोगो
को सरकारी नौकरी मिल जाती है वह बिना काम किये सिर्फ वेतन के वक्त की सक्रीय होता
है | ऐसे लोग कौन है एवं सरकार तथा लोगों ने उस पर क्या कार्यवाही की ? इस पर सब
मौन है | पर इस बात से यह नहीं माना जाता की सब कर्मचारी सिर्फ वेतन पर दीखते है |
खैर, इससे जो लोग काम करते थे एवं जो कर्मचारी नए जुड़े, उनको 5 साल की गुलामी की
जंजीरों में बाँधा गया | कहते है की आदमी के पूर्वज बन्दर है, बन्दर अपनी पूंछ का
इस्तमाल कर एक डाल से दूसरी डाल पर कूदते हुए चला जाता है | उसे भी अगर बंधक बना
दिया जाये तो वह बन्दर भी नाचने लगता है | कम वेतन और पांच साल की गुलामी के बाद
जब उसे फिर से नए सिरे से सुरक्षा में जीवन बसर करना पड़ता है तब तक वह परिवार की
जिम्मेदारियों से लड़ गया होता है | गुलामी में जो लोग असुरक्षा के माध्यम में वह
काम तो अच्छे करते दिखाई देते है पर काम के प्रति जो समर्पण है वह नहीं आ सकता |
मेरा यह मानना है, मेरे देखे हुए एवं भोगे हुए यथार्थ अनुभवों के आधार पर |
आज-कल यह बार बार सुनने में आता है की, हमें किसी बाहरवाले
को यह नहीं बताना है कि, हमारे यहाँ गरीबी, जातिवाद, भुखमरी, नक्सलवाद आदि समस्या
होने के बावजूद हमें सब अच्छा ही दिखाना है | यह आज बहुत जोरों से हो रहा है | आज
देश कई तरह से बिखरा हुआ है एवं बिखरता जा रहा है | समाज एवं देश जब बिखर रहा हो
तब बुद्धिजीवी एवं लेखकों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है | उदय प्रकाश जी ने अपना
अवार्ड लौटाकर समाज के लिए जो सन्देश दिया था वह आज पुरे देश में गूंज रहा है |
इस समय में युवा सपने खुद युवा के नहीं होते है, युवाओं को
इस तरह से तैयार किया जा रहा है कि वह वही देखे जो वह दिखाना चाहते है | युवाओं के
सपने जब युवाओं के नहीं होते है, यानी की अपने नहीं होते | यह जिन्दगी जो मिली है
वह भी बिकी हुई लगती है | युवा जो सपने अपने मानकर जी रहे है, यह भ्रम तोड़ने की
जरुरत है | क्या आपको नहीं लगता की, निजीकरण से जो युवा पीढ़ी तैयार हो रही है, वह
मुखर तो है, पर अपनी सोच से वह मुखरित नहीं हो पाते | व्यवसायलक्षी शिक्षा के साथ
स्वयं केन्द्रित शिक्षा ज्यादा घातक है |
जन्तर-मन्तर पर आयेदिन कई सत्याग्रह के पंडाल लगते रहते है
| कोई कहता है कि, हमें मजदूर गिना जा रहा है, हम मजदूर नहीं है, नाही मजबूर, हमें
मजदूरों से बेहतर वेतन मिलना चाहिए एवं सम्मान भी | मजदूरों से किया जाने वाला
व्यवहार बंद करों | निच्चित रूप से मांग सही भी हो फिर भी नजरिया गलत | मजदूर
मजदूर है तो क्या वह गुनाह है ? मजदूर सबसे ज्यादा काम करता है, कम वेतन पाता है |
यह उनकी मज़बूरी है कि, कम वेतन में उसे काम करना पड़ता है, बिना सुरक्षा के ....|
देखा जाए तो सब मजदूर ही है, बिना काम किये आप अपना गुजारा कर सकते है ? शेर जंगल
का राजा होने के बावजूद उसे शिकार के लिए निकलना ही पड़ता है |
कुछ बाते स्वच्छता अभियान कि कर ली जाए | सफाई अभियान के
अंतर्गत जितने विज्ञापन किये जा रहे है वह होने चाहिए लोगो की जागरूकता के लिए |
किन्तु इससे ठेकेदारी प्रथा बंद हुई ? जहाँ पर असुरक्षा में सफाई कर्मचारी काम कर
रहे है | यह असुरक्षा बंधुआ मजदूरी एवं कम वेतन के लिए भी है | सरकार जिस तरह से
विज्ञापन करते है पर क्या कभी आपने विज्ञापन में उपयोग होने वाले संशाधन सफाईकर्मी
के पास देखा है ? बिना सुरक्षा के गटर साफ़ करना, कूड़ा उठाना आम बात है, पर इस आम
बात में आज तक कोई सुधार नहीं आया | समाज एवं सरकार की जिम्मेदारी होती है, जो
समाज के लिए रोजाना कार्य करते है उन्हें सम्मान के साथ सुरक्षा भी मिलनी चाहिए |
उच्च शिक्षा में फ़िलहाल यह फरमान हुआ है कि, उन छात्रों को
फेलोशिप केन्द्रीय विश्य्विद्यालयों में न दी जाए जो नेट पास ना हो | जेनयू और
दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों ने इसका
विरोध किया | नौकरी के लिए नेट अनिवार्य है, किन्तु फेलोशिप के लिए नहीं | फेलोशिप
पर हर बार सवाल उठते रहते है, किन्तु यूजीसी ने हालही में यूजीसी में आने वाले
अध्यापको एवं आचार्यों आदि को विजिट के लिए मानद भत्ता बढ़ा दिया | अध्यापकीय नौकरी
दरम्यान भी यूजीसी माइनर और मेजर रिसर्च के लिए वेतन के साथ अलग से संशोधन के लिए
फेलोशिप देती है | इस बात पर किसीने ऊँगली नहीं उठाई | जिन संशोधक छात्रों को
फेलोशिप मिलती है, उनपर कई पाबंदिय लगाईं जाती है एवं उसका शोषण भी होता है |
संशोधन क्षेत्र में गुलामी आम बात हो गई है, जिससे बात उछलती नहीं एवं डिग्री
मिलने के बाद मार्गदर्शक को ज्यादातर छात्र भूल जाते है | हालाँकि वह बाहर से भूल
जाते है, अन्दर से नहीं | अन्दर कहीं न कहीं वह शोषण पेड़ बन के उग रहा होता है |
वह व्यक्ति पर निर्भर करता है | भविष्य में अगर वह अध्यापक बन जाए तब वह पेड़ फल
देता है | व्यक्ति के अनुभव एवं देखने का दृष्टिकोण से यह फल प्रेरित होता है |
ज्यादातर यह पेड़ उसी मानसिकता को आगे बढाता है, जो भुगता है | मतलब यह कि, जो उसने
भुगता है, वह अन्य को भुगतने पर मजबूर कर देता है | तो दूसरी तरफ कोई अध्यापक जो
उसने भुगता है उससे शीख लेते हुए अन्य छात्र उसका भोग न बने यह ध्यान रखते है एवं
मानवीय व्यवहार करते है | इस क्षेत्र में जो अन्याय हो रहा है एवं उस पर आप अपने
विचार रखना चाहते है तो हम आपका पूरा सहयोग देगे |
हम प्रतिबद्धता के साथ आपके सहयोग से आगे बढ़ रहे है, हम आप
सभी को धन्यवाद करते है | क्रिएटीव मेम्बर कहीं भी रहे वह अपना काम बखूबी करते
रहते है, Creative Members प्रतिबद्धता एवं कार्य से धन्यवाद | हमारें सारे लेखक
जो हम पर विशवास रखते है एवं पूरा सहयोग करते है, Creative Space
की तरफ से सभी लेखकों को धन्यवाद | अपने व्यस्त समय में डॉ. अनिल खावडु और डॉ. भरत
भेडा ने अपना योगदान दिया | महेमान संपादक के तौर पर किये कार्य के लिए धन्यवाद |
यह अंक आपके सामने रखते हुए, भविष्य में आपके सहयोग की अपेक्षा के साथ....
धन्यवाद |
डॉ. हरेश परमार
Research Associate
CDLA, New Delhi
Mo. 09408110030 and 09716104937
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